कभी हसाती है , कभी रुलाती है जिंदगी
हर मोड़ पे कुछ नया दिखाती है ज़िंदगी
कभी अँधेरी रात है तो कभी सुहानी सुबह है जिंदगी
बस थाम लो इसका हाथ , और चल दो इसके साथ
हर गम मिटा देगी तुम्हारे , क्युकी सिर्फ जीना शिखाती है जिंदगी ..
Mahendra Athneria
It's really very tough to write or express our views, at least for me :),and that's what I am trying here :)
Monday, January 2, 2012
Sunday, August 28, 2011
तेरी नज़रे ....
यहाँ पर तो हर कोइ चुप सा है , तेरी ख़ामोशी का सबब समझ नहीं आता
नज़रे तो तेरी बातें करना चाहती है , कम्भक्त इन्हें खामोश रहना नहीं आता ........
- अकेला
Saturday, January 15, 2011
हौसले
जेब मे एक पैसा नहीं है
पर दिल मे हौसले बड़े है
इसलिए मेरे दोस्त आज हम यहाँ खड़े है
देखते है जिंदगी और कितना इम्तिहान लेती है
किस्मत से लड़ने को आज हम तैयार खड़े है
- अकेला
Wednesday, January 12, 2011
उम्मीद की रोशनी
दिल का जो दर्द था वो, आँखों से निकल गया
जो आता था सपनो मे, वो हकीकत मे बदल गया
हम तो मायूस हो चले थे जिंदगी से
बस एक उम्मीद की रोशनी से, मंजिल का ठिकाना मिल गया
- अकेला
Thursday, December 2, 2010
Akela
I wrote this poem when i was in first year of my BE i.e around 10 years back and now i would like to share it with you.
आज मै अकेला हूं, एसा लग रहा है मुझको
सब -कुछ होते हुए भी , कुछ नहीं लग रहा है मुझको
आज मै अकेला हूं, एसा लग रहा है मुझको
कुछ पल पहले सारा जहाँ मेरे साथ था , आज ये जहाँ तनहा लग रहा है मुझको
बस तेरी याद आ रही है , तू मेरे साथ है एसा लग रहा है मुझको आज मै अकेला हूं, एसा लग रहा है मुझको
कभी ज़माने के साथ चलना चाहता हूँ , कभी ज़माने से दूर जाना चाहता हूँ
आज फिर कुछ गलती कर रहा हूँ , एसा लग रहा है मुझको
आज मै अकेला हूं, एसा लग रहा है मुझको
"अकेला "
Sunday, March 28, 2010
एमए इंग्लिश, हिंदी मीडियम से
Below story is taken from Navbharat Times. albeit it is for fun but somewhere it show us the real face of Indian Education system.
यह हमारे एक मित्र की आज से तकरीबन दस साल पहले की दास्तान है। बात तब की है जब वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक यूनिवर्सिटी से 'एमए (इंग्लिश लिटरेचर)' फाइनल इयर के पेपर दे रहे थे। उस दिन अंतिम पेपर था, जो लॉन्ग एसे का होता है। पेपर से पहले, पेपर के दौरान क्लासरूम में और फिर कुछ साल बाद उनसे हुई बातचीत के चंद नजारे पेश हैं आपके लिए : पेपर के लिए क्लासरूम में घुसने से पहले- 'किस चीज का पेपर है भई आज?' 'आज तो बहुत पेपर हैं।' 'अरे तेरा किस चीज का है।' 'मेरा? मेरा तो 'इंग्लिश' का फोर्थ पेपर है शायद, जनै फिफ्थ है। फोर्थ या फिफ्थ में से ही कोई एक है।' 'तैयारी हो गई?' 'हां, हां, बहुत बढ़िया। भाई साब, रपटाना ही तो है, सो रपटा दूंगा। प्रीवियस में भी हर पेपर में तीन कॉपियां भरी थीं, हर सवाल का जवाब कम-से-कम छह पन्नों का लिखा था। अपना तो यार वो ही टारगेट रहेगा इस बार भी। प्रीवियस में 58 परसेंट नंबर आ गए थे। इस बार भी देखो, कोशिश तो ये ही रहेगी अपनी कि फर्स्ट बन जाए, जिससे कुछ नेट-वेट, पीएचडी-वीएचडी निबटा सकूं।' क्लास रूम में (पेपर के दौरान) (क्लासरूम में हुई बातचीत से पहले यह बता दें कि एमए इंग्लिश लिटरेचर फाइनल इयर में पहले चार पेपर्स में हर पेपर में दस प्रश्न आते हैं, जिनमें से कोई से पांच करने होते हैं। फिफ्थ पेपर लॉन्ग एसे का होता है। इसमें भी कुल दस एसे आते हैं, जिनमें से किसी एक विषय पर लॉन्ग एसे लिखना होता है यानी पूरे तीन घंटे एक ही विषय पर लॉन्ग एसे।) पेपर शुरू होने के आधा घंटे बाद क्लास में ड्यूटी दे रहे टीचर को पता चलता है कि उसने एमए इंग्लिश के एक स्टूडेंट को गलती से बीए प्रीवियस का पेपर दे दिया है। पता किया, तो वह अपने 'भाई जान' ही निकले। आधे घंटे में एक सवाल निबटा चुके थे, बिना इस बात की परवाह किए कि धोखे से उनके पास एमए का नहीं, बीए का पेपर आ गया है। टीचर कुछ कहते, इससे पहले ही उन पर भड़ास निकाल डाली, 'सर जी, आपने तो आज मेरा आधा घंटा खराब करा दिया। वो तो पता चल गया, नहीं तो मैं फेल ही हो जाता। अब जल्दी से लाओ मेरा एमए का पेपर, शुरू करूं, पहले ही काफी टाइम खराब हो चुका है।' ढाई घंटे तक एमए के पेपर को तेजी से रपटाने के बाद अब देखिए 'भाई जान' अपने पीछे बैठे एक स्टूडेंट से क्या बतिया रहे हैं: 'अरे भई क्या बात? ढाई घंटे गुजर गए, तुम तो यार एक ही प्रश्न पे अटके हो अभी तक।' 'हां तो एक ही तो करना है।' 'हैं? क्या बात कर रहे हो यार, मैंने तो चार निबटा मारे, पांचवें की तैयारी है।' 'अरे, शेक्सपियर की छठी औलाद, इंस्ट्रक्शंस तो पढ़ ले। दस में से कोई एक एसे लिखना है, पांच नहीं।' 'अमां हर पेपर में पांच सवाल करने थे तो मैंने सोचा इसमें भी पांच ही रपटाने होंगे। मारे गए, इसमें तो एक ही एसे करना था। खैर, कोई बात नहीं है। मैं भी आइटम तो पूरा हूं। चारों एसे के बीच में जो थोड़ी-थोड़ी जगह छोड़ी है, उसमें कुछ-कुछ लाइन लिखकर मैं चारों एसे को कंटिन्यूएशन में कर देता हूं। जै राम जी की, हो गया एक एसे।' पांच साल बाद 'अरे भाई कहां हो?' 'एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा हूं।' 'चलो सही है।' 'और तुम?' 'प्रोफेसर हूं, 'इंग्लिश' का। एमए निबटाया फर्स्ट क्लास में, और याद है जिस पेपर में मैंने काबलियत दिखाई थी न, उसी में आए सबसे ज्यादा नंबर। उसके बाद मैंने पीएचडी कर मारी। 25 हजार लगे, घर बैठे हो गई। और अब यूनिवर्सिटी में 'इंग्लिश' विभाग में प्रफेसर बन गया हूं। (हंसकर) अरे अपने यारों को ही तो पता है अपनी असलियत, बेचारे स्टूडेंट्स क्या जानें कि उनके प्रफेसर साब ने एमए 'इंग्लिश' हिंदी मीडियम से किया है।' |
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